राजस्व विभाग की भूमिका पर उठे सवाल, नियमों को ताक पर रखकर बनाए गए जाति प्रमाणपत्र
देहरादून: उत्तराखंड में दूसरे राज्यों के लोगों के जाति और आरक्षण प्रमाणपत्र बनाए जाने को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। इस मामले में राजस्व विभाग की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। खासतौर पर बेसिक शिक्षक भर्ती 2024-25 में शामिल हुए अन्य राज्यों के अभ्यर्थियों द्वारा उत्तराखंड में बनाए गए आरक्षण प्रमाणपत्रों की जांच शुरू कर दी गई है।
कार्मिक विभाग की गाइडलाइंस के बावजूद जारी किए गए प्रमाणपत्र
वर्ष 2002 और 2004 में उत्तराखंड सरकार के कार्मिक विभाग ने स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए थे कि राज्य सरकार की नौकरियों में केवल स्थानीय अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) को ही आरक्षण का लाभ मिलेगा।
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इसके बावजूद उत्तर प्रदेश, हरियाणा और मध्यप्रदेश से आईं कुछ युवतियों ने न केवल अपने राज्य में पुराने प्रमाणपत्र निरस्त कराए, बल्कि उत्तराखंड में नए जाति प्रमाणपत्र बनवाकर भर्ती में आरक्षण का दावा भी कर दिया।
शासन सख्त, प्रमाणपत्रों की जांच शुरू
डीजी शिक्षा झरना कमठान ने स्पष्ट किया कि शासन के आदेशानुसार दूसरे राज्य के व्यक्ति को उत्तराखंड में आरक्षण प्रमाणपत्र नहीं दिया जा सकता। इस संबंध में सभी जिलों के सीईओ और डीईओ को निर्देश दिए गए हैं कि वे जिला प्रशासन और राजस्व विभाग के साथ मिलकर इन मामलों की जांच करें।
राजस्व विभाग की टीमें इन अभ्यर्थियों के जाति एवं आरक्षण प्रमाणपत्रों की वैधता की जांच करेंगी। यदि कोई प्रमाणपत्र अवैध पाया जाता है, तो संबंधित अभ्यर्थी का चयन निरस्त कर दिया जाएगा।
शादी के बाद उत्तराखंड आईं युवतियां भी ले रहीं लाभ?
उत्तराखंड में विवाह कर आईं दूसरे राज्यों की युवतियों द्वारा भी आरक्षण का लाभ लिए जाने के मामले सामने आए हैं। जबकि नियम स्पष्ट हैं कि किसी भी अन्य राज्य के व्यक्ति को उत्तराखंड में बने राज्याधीन सेवाओं में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता।
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2002 का शासनादेश (G.O.) साफ कहता है कि उत्तराखंड में केवल राज्य की पहचान के तहत चिन्हित अनुसूचित जाति/जनजाति वर्गों को ही आरक्षण मिलेगा। इसके बाद 2004 के आदेश में प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल अभ्यर्थियों के प्रमाणपत्रों की जांच जिलाधिकारियों (DM) के माध्यम से अनिवार्य कर दी गई थी।
सबसे बड़ा सवाल: फिर प्रमाणपत्र कैसे बन गए?
इन सभी सख्त नियमों और स्पष्ट आदेशों के बावजूद, बाहरी राज्यों के अभ्यर्थियों के प्रमाणपत्र कैसे बन गए? यह एक गंभीर प्रशासनिक चूक है और इसकी जिम्मेदारी राजस्व विभाग पर तय होती दिख रही है। अब देखना यह है कि जांच के बाद क्या दोषियों पर कार्रवाई होती है या यह मामला भी कागजों में ही सिमट जाएगा।